कभी उनकी याद आती है कभी उनके ख्व़ाब आते हैं,
मुझे सताने के सलीके तो उन्हें बेहिसाब आते हैं।
कयामत देखनी हो गर चले जाना उस महफिल में,
सुना है उस महफिल में वो बेनकाब आते हैं।
कई सदियों में आती है कोई सूरत हसीं इतनी,
हुस्न पर हर रोज कहां ऐसे श़बाब आते हैं।
रौशनी के वास्ते तो उनका नूर ही काफी है,
उनके दीदार को आफ़ताब और माहताब आते हैं।
--अज्ञात
मुझे सताने के सलीके तो उन्हें बेहिसाब आते हैं।
कयामत देखनी हो गर चले जाना उस महफिल में,
सुना है उस महफिल में वो बेनकाब आते हैं।
कई सदियों में आती है कोई सूरत हसीं इतनी,
हुस्न पर हर रोज कहां ऐसे श़बाब आते हैं।
रौशनी के वास्ते तो उनका नूर ही काफी है,
उनके दीदार को आफ़ताब और माहताब आते हैं।
--अज्ञात
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