उंगलियाँ थाम के ख़ुद चलना सिखाया था जिसे
राह में छोड़ गया, राह पे लाया था जिसे ।
उसने पोंछे ही नही अश्क मेरी आँखों से
मैंने ख़ुद रो के बहुत देर हसाया था जिसे ।
छू के होठों को मेरे मुझसे बहुत दूर गई
वो ग़ज़ल, मैंने बड़े शौक से गाया था जिसे ।
अब बड़ा हो के मेरे सर पे चढा आता है
अपने कंधे पे कुँवर हस के बिठाया था जिसे ।
--कुँवर बेचैन
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