Surya

मेहनत से उठा हूँ, मेहनत का दर्द जानता हूँ|



मेहनत से उठा हूँ, मेहनत का दर्द जानता हूँ,
आसमाँ से ज्यादा जमीं की कद्र जानता हूँ।

लचीला पेड़ था जो झेल गया आँधिया,
मैं मगरूर दरख्तों का हश्र जानता हूँ।

छोटे से बडा बनना आसाँ नहीं होता, 
जिन्दगी में कितना जरुरी है सब्र जानता हूँ।

मेहनत बढ़ी तो किस्मत भी बढ़ चली,
छालों में छिपी लकीरों का असर जानता हूँ।

कुछ पाया पर अपना कुछ नहीं माना,क्योंकि 
आखिरी ठिकाना मैं अपनी हस्र जानता हूँ।

बेवक़्त, बेवजह, बेहिसाब मुस्कुरा देता हूँ,
आधे दुश्मनो को तो यूँ ही हरा देता हूँ!!

Mehnat se utha hoon, mehnat ka dard jaanta hoon
aashma se jyada, zami ki kdra jaanta hoon

Lacheela ped tha jo jhel gaya aandhiya,
main magroor darakhton ka hashra jaanta hoon.

Chote se bada banana aashan nahi hota,
zindagi mein kitna zaroori hai sabra jaanta hoon.

Mehnat badhi to kishmat bhi badh chali,
chhalon me chipee lakeeron ka asar jaanata hoon.

Kuch paaya par apna kuch nahi maana, kyunki
aakhiri thikana main apni hasra jaanta hoon.

Bewaqt, be wajash, be hisab mushkura deta hoon,
aadhe dushmano ko to yun hi hara deta hoon!
12 Responses




  1. Unknown Says:

    अति उत्तम पंक्ति






  2. ये किसकी लिखी गई की कविता है कोई बता सकता है?


  3. 1996-1997 me Gujarat me Shayar ke program me suna tha. aur log yaha copy paste karke talita Bator rahe hai


  4. बहुत सुंदर... लेखक का नाम बता सकते हैं


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