मत कहो, आकाश में कुहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है!
सूर्य हमने भी नही देखा ही शुबह से,
क्या करोगे, सूर्य का क्या देखना है?
इस सड़क पर इस कदर कीचड़ बिछा है,
हर किसी का पाँव घुटने तक सना है!
पक्ष और प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं,
बात इतनी है की कोई पुल बना रहा है।
रक्त वर्षो से नशों में खौलता है,
आप कहतें हैं क्षणिक उत्तेजना है!!!!!!
हो गई है हर घाट पर पूरी व्यवस्था।
शौक से डूबिये जिसे भी डूबना है!!
दोस्तों, अब मंच पर सुविधा नही है,
आज कल नेपथ्य में संभावना है।
--दुष्यंत कुमार
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है!
सूर्य हमने भी नही देखा ही शुबह से,
क्या करोगे, सूर्य का क्या देखना है?
इस सड़क पर इस कदर कीचड़ बिछा है,
हर किसी का पाँव घुटने तक सना है!
पक्ष और प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं,
बात इतनी है की कोई पुल बना रहा है।
रक्त वर्षो से नशों में खौलता है,
आप कहतें हैं क्षणिक उत्तेजना है!!!!!!
हो गई है हर घाट पर पूरी व्यवस्था।
शौक से डूबिये जिसे भी डूबना है!!
दोस्तों, अब मंच पर सुविधा नही है,
आज कल नेपथ्य में संभावना है।
--दुष्यंत कुमार
एक टिप्पणी भेजें