Surya

आज वेलेंटाइन्स डे है. सो, एक ताजा कहानी सुनिए....

एक लड़का है. उसने आई आई टी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. फिर एमबीए की डिग्री ली और फिलहाल एक मल्टीनेशनल कंपनी में ऊँचे ओहदे पर है. अरसा पहले उसे एक लड़की से मोहब्बत हो गयी. आज उसके साथ शादी हो रही है. लड़का अपने पैरेंट्स का इकलौता बेटा है. पैरेंट्स ने उसे लेकर कई सपने देखे थे. बेटे ने आइआईटी का इंट्रेंस पास किया था, तो वे बहुत खुश हुए थे. पढ़ाई पूरी करने के बाद मल्टीनेशनल कंपनी ने जब उसे सालाना बीस लाख के पैकेज पर नौकरी दी थी, तो जाहिर तौर पर उनकी खुशियों का ठिकाना न था.

पर दो महीने पहले जब लड़के ने पहली बार पैरेंट्स को अपने लव अफेयर के बारे में बताया और अपनी प्रेमिका से शादी की इच्छा का इजहार किया तो घर में हंगामा खड़ा हो गया.
पैरेंट्स ने कहा - क्या हमने यही दिन देखने के लिए तुम्हारी पढ़ाई पर इतना खर्च किया था?
लड़का भी अड गया. उसने कहा - शादी तो वह इसी लड़की से करेगा.
पैरेंट्स ने हथियार डाल दिए.
कहा - ठीक है, तुम्हारी खुशी के खातिर हम इस रिश्ते को तैयार हैं लेकिन ये तो बताओ कि लड़की के घर वाले दहेज कितना देंगे? 
लड़का बोला - नहीं वो कुछ भी नहीं दी पाएंगे. 
पैरेंट्स को फिर झुकना पड़ा.
पूरी कहानी का लब्बोलुआब यह है कि शिक्षा और तरक्की की कई सीढियां चढ़ने के बाद भी हमारी पीढ़ी दहेज जैसी रूढ़िवादी प्रथा और बीसवीं सदी के इण्डिया की मानसिकता से खुद को आजाद करने को तैयार नहीं, लेकिन दूसरी तरफ उन्ही के घरों में दूसरी पीढ़ी उम्मीद की रोशनी भी जगाती है.

वैलेंटाइन्स डे के कल्चर को हम भले इम्पोर्टेंट न कहें, लेकिन पश्चिम की हवा के इस झोंके से अगर दहेज जैसी रूढियों का अंत होता दिखता हो तो खिड़कियाँ खोलने में भला हर्ज क्यों? खुलेगी खिड़की तो कुछ ताजा हवा ही आएगी और सुखद बदलाव ही होंगे...
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