देखी जो मेरी नब्ज़ तो इक लम्हा सोच कर,
कागज़ लिया और इश्क़ का बीमार लिख दिया॥
मत पूछो की किस तरह चल रही है ज़िन्दगी,
उस दौर से गुज़र रहे हैं जो गुज़रता ही नहीं॥
इतना न याद आया करो कि रात भर सो न सकें,
सुबह को सुर्ख आँखों का सबब पूंछते हैं लोग ॥
मोहब्बत की आँधियों से टकराने में ही तो मज़ा है ग़ालिब,
अगर मरना ही है तो मोहब्बत में क्यूँ नहीं ॥
हमारे बाद नहीं आएगा उन्हें चाहत का मज़ा,
वो लोगों से कहते फ़िरेंगे मुझे चाहो उसकी तरह ॥
वो कौन हैं जिन्हें तौबा कि मिल गयी फ़ुर्शत,
हमें गुनाह भी करने को ज़िन्दगी कम है ॥
एक महफ़िल में कई महफिलें होती हैं शरीक,
जिस को भी पास से देखोगे वो तनहा होगा ॥
रोज़ रोते हुए कहती है ज़िन्दगी मुझसे,
सिर्फ़ एक शख़्स के ख़ातिर मुझे बर्बाद न कर ॥
दिल धड़कने का तसव्वुर भी ख़याली हो गया,
एक तेरे जाने से सारा शहर खाली हो गया ॥
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